Shri Shyam mandir 365 dham Vastu

वास्तु शास्त्र क्या होता है?

वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय विज्ञान है जो भवन निर्माण और उसकी संरचना को प्रकृति के पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश) के साथ संतुलित करने की कला और विज्ञान है। इसका उद्देश्य सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाना और नकारात्मक ऊर्जा को कम करना है ताकि वहां रहने वाले लोगों के जीवन में सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य बना रहे। वास्तु शास्त्र में दिशाओं (उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम, और उनके मध्यवर्ती कोण) का विशेष महत्व होता है, क्योंकि प्रत्येक दिशा का संबंध विशिष्ट ऊर्जा और तत्व से होता है।

अच्छा वास्तु क्या होता है?

अच्छा वास्तु वह होता है जब भवन की संरचना, कमरों की स्थिति, प्रवेश द्वार, रसोई, शयनकक्ष, और अन्य हिस्से वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अनुसार बनाए गए हों। उदाहरण के लिए:

  • मुख्य द्वार: उत्तर और पूर्व में होना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश द्वार है।
  • रसोई: दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में होनी चाहिए, क्योंकि यह अग्नि तत्व से संबंधित है।
  • शयनकक्ष: दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए, जो स्थिरता और शांति प्रदान करता है।
  • पानी का स्रोत: उत्तर-पूर्व में जल स्रोत (जैसे बोरवेल या टंकी) शुभ होता है। अच्छा वास्तु वह है जो प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाए रखे और रहने वालों को मानसिक, शारीरिक, और आर्थिक लाभ दे।

वास्तु दोष क्या होता है?

वास्तु दोष तब होता है जब भवन का निर्माण या उसकी संरचना वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का पालन नहीं करती। इससे नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है, जो जीवन में समस्याएं जैसे स्वास्थ्य समस्याएं, आर्थिक हानि, पारिवारिक कलह, या मानसिक अशांति पैदा कर सकता है। कुछ सामान्य वास्तु दोष के उदाहरण:

  • मुख्य द्वार का गलत स्थान: जैसे दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण में मुख्य द्वार होना।
  • रसोई का गलत स्थान: उत्तर-पूर्व में रसोई होने से वास्तु दोष उत्पन्न होता है।
  • टॉयलेट का स्थान: उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व में टॉयलेट होना अशुभ माना जाता है।
  • अनियमित आकार का भवन: जैसे त्रिकोणीय या अनियमित प्लॉट।
  • बाधाएं: मुख्य द्वार के सामने पेड़, खंभा, या गड्ढा होना।

क्या वास्तु सिर्फ घर का ही होता है या किसी और का भी?

वास्तु शास्त्र केवल घर तक सीमित नहीं है। यह किसी भी स्थान पर लागू हो सकता है जहां मानव गतिविधियां होती हैं। इसमें शामिल हैं:

  • दुकान: दुकान में सही दिशा में काउंटर, सामान का भंडारण, और प्रवेश द्वार सकारात्मक ऊर्जा और व्यापार वृद्धि को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, नकदी काउंटर उत्तर दिशा में होना शुभ है।
  • फैक्ट्री: फैक्ट्री में मशीनों का स्थान, गोदाम, और कार्यालय का लेआउट वास्तु के अनुसार होना चाहिए ताकि उत्पादन और लाभ में वृद्धि हो।
  • कार्यालय: कार्यालय में मालिक का केबिन, कर्मचारियों की बैठने की व्यवस्था, और प्रवेश द्वार का वास्तु अनुकूल होना व्यवसाय की प्रगति के लिए जरूरी है।
  • खेत या प्लॉट: खाली प्लॉट में भी वास्तु नियम लागू होते हैं, जैसे जल स्रोत और बाउंड्री की स्थिति।
  • अन्य स्थान: स्कूल, अस्पताल, मंदिर, होटल, और यहां तक कि वाहनों के लिए भी वास्तु नियम लागू हो सकते हैं।

वास्तु शास्त्र के बारे में विस्तार से

1. वास्तु शास्त्र का इतिहास और महत्व

वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति हजारों वर्ष पहले वैदिक काल में हुई थी। इसे "स्थापत्य वेद" का हिस्सा माना जाता है। प्राचीन ग्रंथ जैसे विश्वकर्मा प्रकाश, मयमत, और मानसार में वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों का वर्णन है। यह शास्त्र प्रकृति के साथ सामंजस्य और मानव जीवन को बेहतर बनाने पर जोर देता है।

2. मुख्य सिद्धांत

  • पांच तत्वों का संतुलन: प्रत्येक तत्व का एक विशिष्ट स्थान और दिशा होती है। जैसे, जल का संबंध उत्तर-पूर्व से, अग्नि का दक्षिण-पूर्व से, और पृथ्वी का दक्षिण-पश्चिम से।
  • दिशाओं का महत्व: आठ मुख्य दिशाएं और उनके उप-कोण (जैसे ईशान, आग्नेय, नैऋत्य) विशिष्ट कार्यों के लिए उपयुक्त होती हैं।
  • वास्तु पुरुष मंडल: यह एक काल्पनिक मानव आकृति है जो भवन के प्लॉट पर लेटी हुई मानी जाती है। इसके सिर, पैर, और अंगों के अनुसार भवन के हिस्सों को व्यवस्थित किया जाता है।
  • ऊर्जा प्रवाह: वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम की ओर माना जाता है।

    सुझाव: वास्तु शास्त्र के अनुसार, उत्तर-पूर्व दिशा से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश करती है और दक्षिण-पश्चिम दिशा उसे रोक कर संरक्षित करती है, इसलिए उत्तर-पूर्व को खुला और हल्का तथा दक्षिण-पश्चिम को भारी और स्थिर बनाना चाहिए।

3. प्रमुख वास्तु नियम

  • प्रवेश द्वार: उत्तर, पूर्व, या उत्तर-पूर्व में होना चाहिए। द्वार के सामने कोई बाधा (जैसे खंभा, पेड़) नहीं होनी चाहिए।
  • रसोई: दक्षिण-पूर्व में होनी चाहिए। रसोई में खाना बनाते समय चेहरा पूर्व की ओर होना चाहिए।
    सुझाव: “रसोई के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा दक्षिण-पूर्व है। यदि यह संभव न हो, तो उत्तर-पश्चिम को वैकल्पिक रूप से अपनाया जा सकता है, लेकिन उत्तर और उत्तर-पूर्व में रसोई से बचना चाहिए।”
  • शयनकक्ष: दक्षिण-पश्चिम में मास्टर बेडरूम और उत्तर-पश्चिम में अतिथि कक्ष होना चाहिए। सिर दक्षिण या पूर्व की ओर करके सोना शुभ है।
  • पूजा कक्ष: उत्तर-पूर्व में होना चाहिए, क्योंकि यह दिशा शुद्ध और पवित्र मानी जाती है।
  • टॉयलेट: उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम में होना चाहिए। उत्तर-पूर्व में टॉयलेट वास्तु दोष पैदा करता है।
    सुझाव: “टॉयलेट के लिए उत्तर-पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम दिशा उपयुक्त मानी जाती है, लेकिन उत्तर-पूर्व, उत्तर और ब्रह्मस्थान (केंद्र) में टॉयलेट पूर्णत: वर्जित है।”
  • सीढ़ियां: दक्षिण या पश्चिम दिशा में होनी चाहिए। सीढ़ियों की संख्या विषम (जैसे 11, 15) होनी चाहिए।

    सुझाव: “सीढ़ियाँ दक्षिण या पश्चिम दिशा में होनी चाहिए और उत्तर-पूर्व में इनका निर्माण टालना चाहिए।”

  • पानी और भारी वस्तुएं: जल स्रोत उत्तर-पूर्व में और भारी सामान (जैसे अलमारी, तिजोरी) दक्षिण-पश्चिम में रखें।

4. वास्तु दोष के निवारण के उपाय

यदि भवन में वास्तु दोष हो, तो उसे तोड़-फोड़ के बिना भी ठीक किया जा सकता है:

  • यंत्र और वस्तुएं: वास्तु यंत्र, पिरामिड, या श्री यंत्र स्थापित करना।
  • रंगों का उपयोग: प्रत्येक दिशा के लिए उपयुक्त रंग, जैसे उत्तर-पूर्व में हल्का नीला, दक्षिण-पूर्व में लाल या नारंगी।
  • पौधे: तुलसी या मनी प्लांट जैसे पौधे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं।
  • दर्पण: दर्पण का उपयोग सावधानी से करें, क्योंकि गलत स्थान पर दर्पण नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकता है।
  • नमक: टॉयलेट में नमक का बाउल रखने से नकारात्मक ऊर्जा कम होती है।
  • वास्तु विशेषज्ञ की सलाह: जटिल दोषों के लिए विशेषज्ञ से परामर्श लें।

5. अतिरिक्त सुझाव जो आप जोड़ सकते हैं:

  1. ब्रह्मस्थान – घर का केंद्र – इसे हमेशा खाली या खुला रखना चाहिए।

  2. तिजोरी या अलमारीदक्षिण-पश्चिम दीवार के साथ लगाकर उत्तर दिशा की ओर खुलने वाली होनी चाहिए

  3. बच्चों का कमरा – उत्तर-पश्चिम या पश्चिम में होना उचित होता है।

  4. कारखानों के लिए – भारी मशीनरी दक्षिण या पश्चिम में, और कच्चा माल दक्षिण-पश्चिम में रखना चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए आप गुरुदेव श्री धीरज जी पारीक द्वारा वास्तु शास्त्र पर आधारित कुछ विशेष वीडियो भी देख सकते हैं, जो नीचे दिए गए लिंक में उपलब्ध हैं। इन वीडियो में वास्तु के सिद्धांतों, दोषों एवं उनके सरल समाधान के बारे में विस्तारपूर्वक और सहज भाषा में समझाया गया है।

जय श्री श्याम।

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