
✨ श्याम भक्ति का सार – श्री श्याम स्तोत्रम्
नमामि कलिपुज्ये देवम् नमामि कृष्णं वरद् प्राप्तेयेय।
नमामि श्याम स्वरूपम् नमामि दुष्ठशत्रु विनाशकम् !
नमामि सर्वफलदायकम् ! नमामि सर्व पराजितः भक्त प्रतिपालकम् !
नमामि मोर्वीनन्दनम् ! नमामि विश्व पुज्यतये ।
नमामि कृष्णं रूपध्यायत्ये। नमामि श्याम देवम् सर्व सिद्धी दायकम् ।
"श्री श्याम स्तोत्र" – यह स्तोत्र भगवान श्रीकृष्ण (बाबा श्याम) की महिमा का गुणगान करता है, जो विशेष रूप से कलियुग में भक्तों के दुखों को हरने वाले, वरदायक, सर्वसिद्धिदायक देवता के रूप में पूजित हैं।
पंक्ति-दर-पंक्ति व्याख्या और भावार्थ
1. नमामि कलिपुज्ये देवम्
शब्दार्थ:
- नमामि – मैं नमन करता हूँ, प्रणाम करता हूँ।
- कलि – कलियुग
- पुज्ये – जो पूज्य हैं, जिन्हें पूजा जाता है।
- देवम् – भगवान
भावार्थ:
हे प्रभु! मैं उन देवता को नमन करता हूँ जो इस कलियुग में सर्वाधिक पूजनीय हैं। जब अन्य युगों में विभिन्न देवों की पूजा प्रमुख रही, तब इस पाप-प्रधान कलियुग में, केवल नाम-जप और भक्ति से ही सुलभ, हे श्याम बाबा! आप ही पूज्य हैं। कलियुग में भक्तों के रक्षक, दुखों के हरने वाले और शीघ्र कृपा करने वाले देवता के रूप में आप प्रतिष्ठित हैं।
गूढ़ व्याख्या:
कलियुग में जब धर्म की स्थिति सबसे अधिक क्षीण होती है, तब ऐसे युग में भगवान श्याम (खाटू श्याम / श्रीकृष्ण) की पूजा से मोक्ष तक सुलभ हो सकता है। इसलिए 'कलिपुज्ये' का अर्थ है – कलियुग में पूज्यतम देवता।
2. नमामि कृष्णं वरद् प्राप्तेयेय।
शब्दार्थ:
- कृष्णं – भगवान श्रीकृष्ण
- वरद् – वरदान देने वाले
- प्राप्तेयेय – जिन्हें भगवान कृष्ण से वरदान प्राप्त हुआ है
भावार्थ:
हे प्रभु! मैं आपको नमन करता हूँ, जो स्वयं श्रीकृष्ण के स्वरूप हैं या जिन्होंने श्रीकृष्ण से अद्भुत वरदान प्राप्त किया है। श्याम बाबा को यह विशेष स्थान मिला है क्योंकि उन्होंने महाभारत में अभिमन्यु के पुत्र 'बार्बरिक' रूप में श्रीकृष्ण से वरदान पाया कि वे कलियुग में श्याम रूप में पूजे जाएँगे।
गूढ़ व्याख्या:
बार्बरिक ने युद्ध में अद्भुत बल के साथ श्रीकृष्ण की लीला का आदर किया। कृष्ण ने उसकी बलिदानी भावना से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि "कलियुग में तू मेरे नाम से 'श्याम' के रूप में पूजित होगा"। यह श्लोक उस दिव्य वरदान की स्मृति है।
3. नमामि श्याम स्वरूपम्
शब्दार्थ:
- श्याम – श्रीकृष्ण का सौम्य, सुंदर, नीले रंग का स्वरूप
- स्वरूपम् – रूप, छवि
भावार्थ:
हे श्याम! मैं आपके उस मधुर, मनोहर, श्यामल रूप को नमन करता हूँ जो मन, बुद्धि और आत्मा को शुद्ध करता है। वह स्वरूप इतना आकर्षक है कि देखने मात्र से ही भक्त के भीतर भक्ति का सागर उमड़ पड़ता है।
गूढ़ व्याख्या:
भगवान श्याम का रूप साकार आनंद का प्रतीक है। उनका श्याम वर्ण रूप मायाजाल को काटता है, भ्रम को दूर करता है। ‘श्याम स्वरूप’ में भक्ति की पूर्णता और सौंदर्य दोनों समाहित हैं।
4. नमामि दुष्ठशत्रु विनाशकम्!
शब्दार्थ:
- दुष्ट – बुरे लोग
- शत्रु – दुश्मन
- विनाशकम् – नाश करने वाला
भावार्थ:
हे प्रभु! मैं आपको नमन करता हूँ जो पापियों और अधर्मियों का नाश करते हैं। जब-जब अधर्म बढ़ता है, आप उसका नाश करते हुए धर्म की स्थापना करते हैं।
गूढ़ व्याख्या:
अर्जुन की सहायता के रूप में, कौरवों के अत्याचार को समाप्त करने में, महाभारत का युद्ध ही इसका उदाहरण है। बार्बरिक (श्याम बाबा) को भी युद्ध की सच्चाई समझ आ गई थी कि किस प्रकार अधर्म को खत्म करना ही धर्म है।
5. नमामि सर्वफलदायकम्!
शब्दार्थ:
- सर्व – सभी
- फलदायकम् – फल देने वाला
भावार्थ:
हे प्रभु! मैं आपको नमन करता हूँ जो अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। धन, स्वास्थ्य, सफलता, शांति, प्रेम – जो भी सच्चे मन से माँगा जाए, वह आप अवश्य प्रदान करते हैं।
गूढ़ व्याख्या:
आपकी कृपा से जो भी भक्त श्रद्धा से आपके शरण में आता है, वह कभी खाली नहीं जाता। "श्याम नाम" स्वयं में एक वांछित फलदायक महामंत्र है।
6. नमामि सर्व पराजितः भक्त प्रतिपालकम्!
शब्दार्थ:
- सर्व पराजितः – सभी ओर से हारे हुए लोग
- भक्त प्रतिपालकम् – भक्तों के रक्षक
भावार्थ:
हे श्याम! मैं आपको नमन करता हूँ जो जीवन की हर दिशा से पराजित हुए भक्तों के भी रक्षक बनते हैं। जब मनुष्य चारों ओर से हताश होता है, तब आप ही उसकी आशा बनते हैं।
गूढ़ व्याख्या:
बाबा श्याम की यही विशेषता है कि वे टूटे हुए को जोड़ते हैं, बिखरे हुए को समेटते हैं और असफल को सफलता की ओर ले जाते हैं। शरणागत वत्सलता का यह अद्भुत रूप केवल बाबा श्याम में देखा जाता है।
7. नमामि मोर्वीनन्दनम्!
शब्दार्थ:
- मोर्वी – बार्बरिक की माता का नाम
- नन्दनम् – पुत्र
भावार्थ:
हे मोर्वी माता के लाडले पुत्र! आपको नमन है। आपकी मातृभक्ति, आज्ञाकारिता और त्याग की भावना से ही आपको अमरत्व प्राप्त हुआ।
गूढ़ व्याख्या:
यह पंक्ति श्याम बाबा के पारिवारिक स्वरूप को दर्शाती है, जो एक आज्ञाकारी पुत्र थे। युद्ध में सम्मिलित न होकर श्रीकृष्ण की इच्छा का पालन करते हुए अपना शीश अर्पित कर देना, त्याग की पराकाष्ठा है।
8. नमामि विश्व पुज्यतये।
शब्दार्थ:
- विश्व – संसार
- पुज्यतये – जो पूजा जाता है
भावार्थ:
हे प्रभु! मैं आपको नमन करता हूँ जो पूरे संसार में पूजे जाते हैं। भारत ही नहीं, विश्वभर में आपके मंदिर, भक्तों की कतारें, कीर्तन और श्रद्धा का ज्वार इसका प्रमाण हैं।
गूढ़ व्याख्या:
खाटू श्याम का यश अब सीमाओं को पार कर चुका है। उनकी महिमा न जाति देखती है, न वर्ग, न भाषा। शुद्ध प्रेम और समर्पण ही उनको प्राप्त करने का साधन है।
9. नमामि कृष्णं रूपध्यायत्ये।
शब्दार्थ:
- कृष्णं – श्रीकृष्ण
- रूपध्यायत्ये – जिनके रूप का ध्यान किया जाता है
भावार्थ:
हे श्रीकृष्ण के रूपधारी! मैं आपको नमन करता हूँ। आपमें ही श्रीकृष्ण का रूप, गुण, करुणा, और लीलाएँ समाहित हैं।
गूढ़ व्याख्या:
बाबा श्याम स्वयं श्रीकृष्ण के अंशस्वरूप हैं। वे ‘श्याम’ इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि उनका रूप, भाव, और चरित्र श्रीकृष्ण से अभिन्न है। भक्तों को यह एहसास होता है कि वे श्रीकृष्ण से ही साक्षात् संवाद कर रहे हैं।
10. नमामि श्याम देवम् सर्व सिद्धी दायकम्।
शब्दार्थ:
- सर्व सिद्धी – सभी सिद्धियाँ (सफलताएँ, उपलब्धियाँ)
- दायकम् – देने वाले
भावार्थ:
हे श्याम देव! मैं आपको नमन करता हूँ जो अपने भक्तों को हर प्रकार की सिद्धियाँ और इच्छित फल प्रदान करते हैं। आपकी भक्ति से जीवन के सभी क्षेत्र – मानसिक, भौतिक, आध्यात्मिक – में सफलता प्राप्त होती है।
गूढ़ व्याख्या:
जिस प्रकार हनुमानजी को रामभक्ति से सिद्धियाँ प्राप्त हुईं, उसी तरह श्याम भक्ति भी समस्त इच्छाओं की पूर्ति का साधन है। शुद्ध हृदय से सच्चे भाव से किया गया नामस्मरण भक्त को सफलता के शिखर तक पहुँचाता है।
नित्य पाठ का महत्त्व
"श्रद्धा एव समर्पित भाव से शुद्ध मन से नित्य इस पाठ के अध्ययन करने से बाबा श्याम की अहैतु कृपा प्राप्त होती है।"
इस अंतिम वाक्य में इस स्तोत्र के नित्य पाठ का लाभ स्पष्ट किया गया है। ‘अहैतुकी कृपा’ अर्थात ऐसी कृपा जो बिना किसी कारण, बिना किसी शर्त के मिलती है — यह केवल श्याम जैसे करुणामय देवता के माध्यम से ही संभव है।
- श्रद्धा – विश्वास
- समर्पण – आत्मनिवेदन
- शुद्ध मन – पवित्रता और निष्कलंक भाव
जो भक्त नित्य इस स्तोत्र को पढ़ते हैं, उनके जीवन से निराशा दूर होती है, घर में समृद्धि आती है, मन में शांति, कर्म में सफलता और आत्मा में स्थिरता उत्पन्न होती है।